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वार्षिक प्रतिवेदन
(2021)
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समाचार पत्रिका
जनवरी से जून, 2021
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निदेशक की कलम से
भा.कृ.अनु.परि.-शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, डी.सी.एफ.आर. की ओर से बधाई!
डा0 प्रमोद कुमार पाण्डे,
निदेशक
भा.कृ.अनु.परि.-शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, देश का एकमात्र ऐसा प्रमुख अनुसंधान संस्थान है जो शीतजल कृषि के सतत् विकास, प्रबन्धन एवं पर्वतीय धाराओें की मत्स्य प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहा हेै। यह भा.कृ.अनु.परि (आई.सी.ए.आर.) नई दिल्ली के तहत वर्ष 1987 से राष्ट्र् की सेवा में है। भारत के हिमालयी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में ग्रामीण आवास के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने हेतु शीतजल की मत्स्य प्रजातियों के पालन में अपार सम्भावनाऐं हैं। शीतजल मत्स्य संसाधनों के समग्र एवं सतत् उपयोग की आवश्यकता, उनका विकास और उन्नति शीतजल के क्षेत्र में काम करने के लिए एक प्रेरक शक्ति का काम रही है।
भा.कृ.अनु.परि.-शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय पर्वतीय क्षेत्र की आबादी के मध्य आजीविका के अवसरों की सम्भावनाओं को महसूस करने और सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता परक अनुसंधान, शीतजल के टिकाऊ मत्स्य उत्पादन, प्रबन्धन, संरक्षण एवं परिस्थितिकी पर्यटन के लिए सेवाओं का विस्तार करके व्यावहारिक समाधान प्रदान करने में निरंतर अग्रणी रहा है।
निदेशालय ने पर्वतीय जल-कृषि में विविधता लाने व कार्यक्षम एवं लागत प्रभावी आहार विकसित करने के लिए जी.आई.एस. भौगोलिक सूचना प्रणालीद्ध के आधार पर उपयुक्त स्थलों के मानचित्रण, तालाबों में प्रजनन हेतु प्रविधियांे एवं शीतजल की विभिन्न मत्स्य प्रजातियों के पालन में प्रगति की है। पर्वतीय जलकृषि के विकास के लिए तालाबों में कई प्रजातियों का सफलतापूर्वक प्रजनन एवं पालन-पेाषण किया जा चुका है। रेन्बो ट्रॉउट स्टार्टर फीड के विकास और उसके व्यावसायीकरण का सत्यापन पूर्ण हो गया है। शीतजल मत्स्य प्रजातियों के रोगों के मुद्दों और तद्सम्बन्धी चुनौतियों को सक्रिय रूप से परिभाषित किया जा रहा है। शीतजल मत्स्य फार्मों की रोग निगरानी, रोग जनकों की पहचान करने और प्रबन्धन के उपायों को विकसित करने में ईमानदारी से प्रयास किऐ जा रहे हैं। निदेशालय शीतजल मत्स्य पालन और जलीय कृषि के विभिन्न पहलुओं पर वैज्ञानिक ज्ञान का प्रसार करने के लिए किसानों, मत्स्य अधिकारियों एवं संबन्धित हितधारकों के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम, प्रदर्शन, परामर्श तथा प्रदर्शनियों आदि का भी आयोजन करता है। जनजाति उपयोजना गतिविधि के तहत रेन्बो ट्रॉउट की खेती को एक लाभकारी आजीविका के विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। इस योजना के अन्र्तगत निदेशालय अधिगृहित किये गये किसानों को बुनियादी ढांचा और महत्वपूर्ण सामग्रियां प्रदान करता है साथ ही जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तराखण्ड, सिक्किम, मेघालय व नागालैण्ड राज्य में ट्रॉउट, महाशीर व कार्प खेती की स्थापना के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। भा.कृ.अनु.परि. के अन्य अनुसंधान संस्थानों, पर्वतीय राज्यों के मत्स्य विभागों, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों, गैर-सरकारी संगठनों एव केन्द्रीय ईकाइयों जैसे-राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड और जैव प्रोैद्योगिकी विभाग के साथ अनुसंधान विस्तार एवं क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिए संबन्धों को मजबूत करने में दृढ़ विश्वास रखता है। निदेशालय ने स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी. स्तर पर छात्रों के शैक्षणिक एवं सहयोगी अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालयों, राज्य मत्स्य विभागों और अन्य संस्थानों के साथ एम.ओ.यू. के माध्यम से सम्बन्ध बनाये हैं।

कोविड-19 महामारी के कारण हमें उचित और नवीन कार्यों के साथ शीतजल मत्स्य पालन के क्षेत्र में संबन्धित चुनौतियों को दूर करने की आवश्यकता है। मैं सभी हितधारकों को आश्वस्त करता हूँ कि हम इस क्षेत्र को नई उॅचाईयों पर ले जाने में कोई कसर नही छोड़ेंगे।
प्रमोद कुमार पाण्डेय
निदेशक
ई मेल: director.dcfr@icar.gov.in
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